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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं

 

(1)


'भोर का कागज' नामक अखबार ने 'वेद-बाइबिल और कुरान की नारी' नामक मेरी धारावाहिक रचना का प्रकाशन अचानक बंद कर दिया है। बंद करने की वजह उन लोगों ने यह बताई है कि उन्हें पाठकों की अनगिनत प्रतिक्रियाएँ मिली हैं, ज़्यादातर प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ! इसलिए इसका प्रकाशन जारी रखना, उनके लिए मुमकिन नहीं है!

इधर मैं इसके बिल्कुल उलट आबोहवा से दो-चार हो रही हूँ। पाठक उलाहना दे रहे हैं, 'काफी दिनों से आपकी कोई रचना नज़र नहीं आई। हम सब आपके धारावाहिक के मुग्ध-पाठक थे।

अब मैं कौन-सी राह पकइँ? अखबारों के पाठक कुछ सोच रहे हैं मेरे पाठक कुछ और! असल में अब मैं एक निश्चल राय बनाने को लाचार हो गई हूँ। अखवारवाले, पाठकों की माँग से ज़्यादा लेखक से अपने संपर्क को अहम बना लेते हैं। आमतौर पर मेरे जरिए कोई भी संपर्क नष्ट नहीं होता, क्योंकि मैं हर किसी संपर्क में यथासंभव निःस्वार्थ रहने की कोशिश करती हूँ। लेकिन दूसरे पक्ष का निःस्वार्थ होना संभव नहीं होता। इसलिए वे लोग मुझे एक रहस्यमय चरित्र के तौर पर खड़ा करने की कोशिश करते हैं। और उन लोगों के स्वार्थ पर चोट पड़ते ही वे लोग दूर खड़े-खड़े मुझ पर ताने व्यंग्य के तीर छोड़ा करते हैं और अपने यार-दोस्तों समेत इसका मज़ा भी लेते हैं।

खैर, इन सबसे मेरा कुछ भी नहीं आता-जाता। सच तो यह है कि उन लोगों के जोड़-घटाव में थोड़ी-बहुत भूल हो गई है! खैर, भूल हुई, तो होने दो! मेरा आज का विषय ‘भोर का कागज' नहीं है। न ही बौद्धिकता के दुम पत्रकार हैं!

(2)


यहूदी धर्म और इस्लाम धर्म के बारे में किसी किस्म का मंतव्य नहीं दिया जा सकता। लेकिन हिंदू, ईसाई, बहाई और बौद्ध धर्म पर मनमाना मंतव्य दिया जा सकता है।

यहूदी या इस्लाम की आलोचना करते ही गर्दन कलम करने की धमकियाँ मिलने लगती हैं। यहूदी और इस्लाम का रिश्ता एक तरफ गहरा है, दूसरी तरफ बैरी। एकेश्वरवाद यहूदी धर्म से ही आया है। ईसा के जन्म से डेढ़-दो हज़ार पहले, यहूदी धर्म, इज़राइल में शुरू हुआ। शुरू-शुरू में इस धर्म में एकेश्वरवाद नहीं था। पेड़-पौधे, पहाड़, पत्थर, झरना वगैरह ही पूजे जाते थे। वाद में याहुआ (जिहोबा) देवता की कल्पना पल्लवित हुई। इज़राइल के खानाबदोश यहूदियों ने किसी जमाने में पैलेस्टाइन अंचल दखल कर लिया था। उस वक्त याहआ को युद्ध देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उन दिनों इस ख्याल को बल मिला कि देवता के नाम पर इंसानों में युद्ध के प्रति स्वाभाविक आग्रह जगाया जाए यानी इंसानों की हत्या करके, उनकी मदद से संपत्ति की लूटपाट करना, धर्म विरुद्ध नहीं है।

यहूदी धर्म-ग्रंथ को तीन हिस्सों में बाँट दिया गया। पहला भाग-जेनेसिस (ईश्वर ने कैसे पृथ्वी, और प्राणियों की सृष्टि की, इसकी कथा)। एक्सोडस-(मोजेज़ की जीवनी, मशहूर टेन कमांडमेंट्स और अन्यान्य धार्मिक निर्देश और मिस्त्री लोगों की अधीनता से यहूदियों की मुक्ति-कथा), लेवीटिकस-(धार्मिक नियम-कानून), नम्बरम (मिस्र से चले आने के बाद इतिहास और विधि-निषेध की कथा), डयटेरनॅमी (धार्मिक नियम) और जोशुआ की किताब (जोशुआ के नेतृत्व में यहूदियों ने किस तरह पैलेस्टाइन पर दख़ल जमाया, यह कथा)। दूसरे भाग में, जोजेज, रूंथ सैमुएल, पैरालिपोमेनन, इज़रा, नेहेमिया, इसथर जोब, राजा डेविड और सलोमन वगैरह की पुस्तक। तीसरे भाग में ईश्वर का इत इसहिया, जेरेमिया, इज़किएल, डैनियेल और अन्यान्य बारह छिटपुट देवदूतों की कथा। इसी यहूदी धर्म से ही दुनिया के दो वृहद्तम धर्म-ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई। यहूदियों के 'ओल्ड टेस्टामेंट' के बहुत सारे तत्त्व, धार्मिक आचार, घटनाएँ और कल्पनाएँ, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म में शामिल कर लिए गए।

सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ, इंसानों द्वारा निर्मित धर्म-विश्वास भी कैसे परिवर्तित और रूपान्तरित हुआ, इसकी सबसे बड़ी मिसाल है-यहूदी धर्म! यहूदी धर्म से उद्भूत ईसाई धर्म के भक्तों की संख्या दुनिया में आजकल सबसे अधिक है। समूची दुनिया में आज ईसाई धर्मावलम्बियों की तादाद औसतन 33.3% है। मुस्लिम 17.8%, हिंदू 13.3%, बौद्ध 6.2% और यहूदी 0.4% हैं। ईसापूर्व तीन हज़ार साल और उसके बाद भी कई सौ वर्षों से समाज और साथ ही धर्मों में भी रूपांतर होता रहा और दुनिया के दुर्बल-चित्त इंसानों ने इन धर्मों को ध्रुव-सत्य मान लिया है।

मुसलमानों में सूअर का गोश्त वर्जित है। यह यहूदियों के विधि-निषेध से आया है। यहूदी लोग खानाबदोश हुआ करते थे, उनके शत्रु थे, कृषिजीवी! वे लोग अपने घरों में सूअर पालते थे। शत्रुओं के घर में पाले-पोसे जाते हुए जन्तु के प्रति घृणा के भाव की वजह से यहूदियों ने सूअर के मांस को निषिद्ध घोषित कर दिया था।

लिंग-छेदन (खतना) भी यहूदी समाज में प्रचलित था बाद में इस नियम को ईसाई और ईसाई के बाद मुसलमानों ने ग्रहण किया। ऐसे ही हज़ारों विधि-निषेध और आचार-विचार ग्रहण करने के बाद कुरान शरीफ में घोषणा की गई-हे ईमानदार लोगो, तुम लोग यहूदी और ईसाइयों को अपने मित्र के रूप में मत ग्रहण करना। वे दोनों एक-दूसरे के मित्र हैं और तुम लोगों में से जो कोई भी उन्हें मित्र मानेगा, वह उन्हीं का हो जाएगा। और मैंने ऐसे काफिरों के लिए निश्चित रूप से बेड़ियाँ, गले की फाँस और धधकती हुई आग तैयार रखी है। यहूदियों में ईश्वर की तस्वीर आँकना वर्जित है, जो इस्लाम धर्म में भी नज़र आता है। इस्लाम में, शुरू के दिनों में यहूदी और ईसाइयों को पर्याप्त मर्यादा दी जाती थी। बाद में यहूदी, ईसाई समेत, सभी गैर मुस्लिमों के खिलाफ इस्लाम ने चरम शत्रुता का सूत्रपात किया और उन लोगों के खिलाफ अशोभन मंतव्य और धमकियों की बरसात शुरू कर दी। धर्म और ईश्वर के नाम पर, इंसान को इंसान के विरुद्ध भिड़ा देने का एक ही मतलब था-अरब अंचलों में धनी-मानी वर्गों का एकछत्र आधिपत्य जमाना, कारोबार करना और नए-नए राज्य दखल करने का मौका तैयार करना।

धर्म के रहस्यों की यह गुत्थी, अगर चाहें, तो खोली भी जा सकती है! जो लोग इस गुत्थी में फँसे-फँसे, ज़िंदगी गुज़ारना चाहते हैं, वे लोग दूसरों को यह गुत्थी सुलझाते देखते ही, झपट पड़ते हैं। यह उन लोगों की अज्ञता हो सकती है या अति-धूर्तता भी हो सकती है। क्योंकि इस आधुनिक विश्व में धर्म का धंधा काफी जोरों पर है। कौन इसके जरिए अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है, कौन नहीं, यह समझना दुष्कर है। अंत में, किसी भी आधुनिक इंसान को चाहिए कि वह मानवता के धर्म को ही सर्वोत्कृष्ट धर्म मानकर, इसे ही कबूल करे।


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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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